पापी ग्रह शनि, राहु, केतु तीनों ही हैं राहु और केतु खाना न: 4 में पाप छोड़ने का चन्द्र के साहमने हलक उठाते हैं | शनि कहाँ न: 11 में बृहस्पत ग्रह को हाज़िर नाज़िर समझ कर राहु केतु के पैदा किये गए पापों का फैसला करता है | यदि राहु केतु खाना न: 4 या चन्द्र के साथ किसी भी घर में हो और (2) शनि खाना न :11 या बृहस्पत के साथ किसी भी घर में हो तो ऐसे टेवे में पाप या पापी दोनों का बुरा असर न होगा | और सब ग्रह धर्मी होंगे | यह शर्त नहीं कि पापी ग्रह एसी हालत में बैठे हुए उत्तम फल जरूर ही देंगे | प्रतिज्ञा केवल इतनी है कि पाप नहीं करेंगे |
2. कुंडली के हर खाना की मुश्तरका लकीर या दीवार, हमसाया, ग्रहों सिर्फ (दोस्तों) को मिलाया करती है मगर दुश्मनों को अलग अलग रखती है यानि कुंडली में बैठे हुए दो ग्रह जो बाहम दोस्त हों और कुंडली के वह घर जिन में वह बैठे हैं सिर्फ एक लकीर से जुदा जुदा हो रहे हों तो इकठठे या साथी ग्रह कहलाते हैं जो एक दूसरे का बुरा न करेंगे | मगर दो दुश्मन गिने हुए हुए ग्रहों की हालत में दो खानों के दरम्यानी लकीर उन ग्रहों को जुदा जुदा ही रखेगी |
क्याफा :एक रेखा के साथ-साथ ही दूसरी रेखा उदाहरण या एक ही किस्म की रेखा होगी बशर्ते कि दोनों ही एक बुर्ज पर वाक्फा दो एसी शाखों से मुराद होगी कि कोई अपना भाई बहन साथ चल रहा होगा या वह दूसरी शाख अपने ही खून का ताल्लुकदार बनाएगी |
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