भारतीय मान्यता अनुसार काल विभाजन
भारतीय मान्यता अनुसार काल विभाजन
मानव जीवन को नियमत एवं सुव्यवस्थित रूप निर्धारण करने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने व्यवहारिक "काल मान" का प्रणयन किया हिया | भचक्र में भ्रमण करते हुए सूर्य के एक चक्र को "वर्ष" की संज्ञा दी गई है | व्यवहारिक रूप में 'वर्षमान' में सूक्ष्तम इकाई को क्षण, विपल या सैकिण्ड कहते हैं | यधपि आजकल के जयोतिश्यों द्वारा काल विभाजन का निर्धारण घंटे, मिनट, सैकिण्ड में किया जाता है | परन्तु प्राचीन समय में भारतीय ज्योतिषविदों (ज्योतिष आचार्यों) द्वारा अहोरात्र, दिन, घटी (घड़ी) पल, विपल, मुहूर्त आदि में अति सूक्ष्म रूप में काल विभाजन किया था | यधपि आजकल काल विभाजन घंटा, मिनट, सैकिण्ड में किया जाता है परन्तु प्राचीन काल में प्रयुक्त की जाने वाले काल विभाजन की जानकारी होनी भी परम आवश्यक है | निम्न में प्राचीन काल में प्रयुक्त काल विभाजन कैसे किया जाता था यही बताने की कोशिश की जा रही है :-
प्राचीन भारतीय मतानुसार पलक झपकने में जितना समय लगता है , उसे (उस पल यानि कि पलक झपकने में लगने वाले समय को) "एक निमेष" कहते हैं | तीन निमेष का "एक क्षण" होता है | 5 क्षण की एक काष्ठा तथा 15 काष्ठा की एक लघु एवम 15 लघु की एक घटी (घड़ी) होती है | आपके सुविधानुसार काल विभाजन निम्न अनुसार होगा:-
3 (तीन) लव अथवा एक पलक झपकना | एक निमेष |
3 (तीन) निमेष | 1 (एक) क्षण |
5 (पाँच) क्षण | 1 (एक) काष्ठा |
15 (पंद्रह) काष्ठा | 1 (एक) लघु |
15 (पंद्रह) लघु | 1 (एक) घटी (या 24 मिनट) |
2 ½ (अढ़ाई) घटी | 1 (एक) घंटा) |
60 (साठ) घटी | 24 (चौबीस) घंटा |
10 (दस) बार गुरु अक्षर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसे 1 (एक) प्राण अथवा 1 (एक) असु कहते हैं | एवं कमल पत्र पर सुई से छेड़ करने में जो समय लगता है उसे त्रुटि कहते हैं :-
1 (एक) असु | 10 विपल या 4 सैकिण्ड |
60 विपल | 1 पल या (24 सैकिण्ड) |
60 पल | 1 घटी (घड़ी) |
1 घटी (घड़ी) | 24 मिनट |
60 घटी (घड़ी) | 24 घण्टे |
2 घटी (घड़ी) | 1 मुहूर्त (48 मिनट) |
30 मुहूर्त | 1 अहोरात्र (दिन-रात) |
1 याम | दिन का चौथा भाग या 1 प्रहर |
8 प्रहर | 1 अहोरात्र |
7 अहोरात्र | 1 सप्ताह |
4 सप्ताह | 1 मास |
12 मास | 1 वर्ष |
घन्टों-मिनटों का घटी (घड़ी) पलों में परिवर्तन
1 मिनट | 2 ½ पल |
4 मिनट | 10 पल |
12 मिनट | 30 पल |
24 मिनट | 1 घटी (घड़ी) |
60 मिनट (1 घंटा ) | 2 ½ घटी (घड़ी) |
60 विकला | 1 कला |
60 कला | 1 अंश |
30 अंश | 1 राशि |
12 राशि | 1 मगण |
दिनमान | सूर्योदय से सूर्यास्त तक |
रात्रिमान | सूर्यास्त से आगामी सूर्योदय उदय तक |
उषाकाल | सूर्योदय पूर्व 5 घटी (घड़ी) |
प्रातः | सूर्योदय से 3 घटी (घड़ी ) तक |
सायं | सूर्यास्त से 3 घटी (घड़ी) तक |
प्रदोष | सूर्यास्त से 6 घटी (घड़ी) तक |
निशिर्ष | अर्धरात्रि के मध्य की 2 घटी (घड़ी) |
7 दिन-रात | 1 सप्ताह |
15 अहोरात्र | 1 पक्ष |
2 पक्ष | 1 चन्द्रमास |
6 ऋतुएं | 1 वर्ष |
3 ऋतुएं (6 मास) | 1 अयन |
2 अयन | 1 वर्ष |
उपरोक्त अनुसार परिलक्षित होता है कि भारतीय काल-मान की पद्धति प्राचीन काल से ही अति सूक्ष्म रही है, एवं भारतीय पौराणिक परिपाटी के अनुसार :-
4320000 वर्ष = एक महायुग
4320000 वर्षों की अवधि में ही सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर, एवं कलियुग- इन चारों युगों का अनुक्रम चलता है | इन वर्षों में :-
17 लाख 28 हज़ार वर्षों का एक सतयुग
12 लाख 96 हज़ार वर्षों का एक त्रेतायुग
8 लाख 64 हज़ार वर्षों को एक द्वापर युग
4 लाख 32 हज़ार वर्षों का के कलियुग होता है
चारों युगों का एक महायुग
71 युगों का एक 1 मनवन्तर
एक हज़ार महायुगों का एक कल्प या ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है
360 कल्पों का ब्रह्मा का 1 वर्ष
तथा 36000 कल्पों के ब्रह्मा के आयु का प्रमाण होता है
प्रत्येक मन्वंतर के आदि और अंत में सतयुग प्रमाण के 1 संधि होती है | संधि को प्रलय काल भी कहते हैं | 15 संधि समेत ही 14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है |
उपरोक्त 14 मन्वन्तरों में प्रत्येक मन्वंतर का एक०एक अलग मनु होता है | इस समय वैवस्वत नामक सातवाँ मन्वंतर बीत रहा है तथा छः मन्वंतर बीत चुके हैं और 71 महायुगों मे से 27 महायुग बीत चुके हैं | 27वें महायुग के 3 युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग) बीत गए हैं तथा कलियुग का प्रथम चरण प्रारम्भ हो चुका है |
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bahut hi badhiya jaankari mili hai sukkriya
जवाब देंहटाएंNice
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