धर्म स्थान या पेशानी का दरवाजा :-
दोनों भावों की दरमियानी मर्कज, जो नाक का आखिरी हिस्सा है जहाँ तिलक लगाने की जगह है, खाना नं० 2 की असली जगह है। इस तिलक लगाने की निशान की जगह को छोड़ कर माथे की बाकी जगह पेशानी होती है जिसका जिक्र खाना नं० 11 में है। जब खाना न० 2 हर तरह और हर तरफ (खाना नं० 8 की दृष्टि) वगैरा से खाली हो, तो खाना नं० 2 को तिलक की जगह गिनते हैं। इस खाना नं० 2 में हवाई ख्याल की तमाम ताकत में राहु केतु मुश्तरका की या मसनूई (नकली) शुक्र की जगह को मानते हैं। खाना नं० 8 का प्रभाव जाता है खाना नं० 2 में, और 2 देखता है खाना नंबर 6 को, इसलिए खाना नं० 2 का फैसला 2, 6, 8 को साथ मिलाकर होगा या दूसरे शब्दों में खाना नं० 8 को अगर राहु केतु की शनि के साथ होने की बैठक माने तो उस बैठक में बैठ कर या मौत के दीवान खाने का दरवाजा नं० 2 सिर्फ राहु केतु दोनों की बैठक मुश्तरका होगी जिसमे शनि की मौत का ताल्लुक न होगा, सिर्फ राहू केतु की अपनी नेकी बदी का मैदान मंदिर मस्जिद आदि होगा। इस धर्म स्थान का दरवाजा - दोनों भावों के एन दरमियानी जगह (बीच का स्थान ) होगा, जिसका मालिक दोनों जहानों का स्वामी (बृहस्पत) है। जिसके रास्ते की लम्बाई के दोनों सिरों पर सूरज, शनि ((दिन-रात) गिनते हैं, यानि दुनियां से बाहर नं० 8, दुनिया का अन्दर खाना नं० 11 के साथ बृहस्पत की दूसरी ताकत खाना नं० 5 मुस्त्किबल (भविष्य) खाना नं० 9 माजी (भूतकाल) के बीच जमाना हाल, वर्तमान नं० 1 या बंद मुठ्ठी के खाने 1, 4, 7, 10) होगा। थोड़े लफ्जों में जिस तरह खाना नंबर 4 ने अपनी नेकी न छोड़ी थी उसी तरह ही खाना नं० 2 ने कुल दुनियां से ताल्लुक न छोड़ा | अगर नाभि तमाम जिस्म का दरमियान (बीच) था और बंद मुठ्ठी के खाना में खाना नं० 4, बच्चे के साथ लाये हुए खजाने का भेद था तो चेहरे पर तिलक की जगह या दुनियां में बच्चों के लिए बाकी सब तरफ मिलने मिलाने वाला खजाने का
लाल किताब पन्ना नंबर 62