तुम ही मेरे सब कुछ हो
चाँद के बिना चाँदनी कहाँ,
सूरज के बिना रोशनी कहाँ,
प्यार के बिना जिंदगी कहाँ,
तुम्हें कैसे बताऊँ कि तुम मेरे क्या हो ?
बस इतना ही जानती हूँ,
कि तुम ही मेरे सबकुछ हो .....
तुम्हारे बिना जिंदगी
जिंदगी, जिंदगी नहीं लगती,
तुम्हारे बिना न दिन को चैन है,
न रात को नींद,
सब से यही कहती हूँ कि,
तुम ही मेरे सबकुछ हो .....
हर समय क्योंकि तुम्हारे बारे में ही,
सोचा करती हूँ,
जब भी खुद को फुर्सत में पाती हूँ,
तुम्हारा चेहरा आँखों के साहमने आ जाता है,
यकीं है तुम पर इतना कि,
तुम ही मेरे सबकुछ हो.....
धड़कने सुनती हूँ तो लगता है,
कि तुम कुछ कह रहे हो,
सांस लेती हूँ जब भी,
तेरी खुशबू से तन महक जाता है,
आइना भी यही कहता लगता है कि,
तुम ही मेरे सबकुछ हो .....
पलकें बंद करती हूँ तो,
तुम साहमने आ खड़े होते हो,
तुम्हारे अस्तित्व ने मेरे अंतर्मन,
को इस कदर छू लिया है,
हरपल यही कहती हूँ कि,
तुम ही मेरे सब कुछ हो ......
जान, जिंदगी,दिल, अरमां, चाहत, ख्वाब,
धड़कन, सांस, साया, अहसास, महक, आस,
हां, बस, हां, बस,
तुम ही मेरे सबकुछ हो ....
तुम ही मेरे सबकुछ हो ....
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वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति,..
जवाब देंहटाएंविनीत जी,..पढकर अच्छा लगा..बधाई
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धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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