bashir badar

ख्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा के ले जाये
कुछ दिन पहले मैं कुछ गज़ल को पढ़ रहा था | उन्ही गज़लों में से "बशीर बदर" साहिब की ये गज़ल जो मुझे बहुत पसंद आई | मुझे लगा कि ये गज़ल आप सब के साथ भी शेयर की जानी चाहिए | तो पेश है :-

"बशीर बदर"


ख्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा के ले जाए,
कब्र  के   सूखे  हुए  फूल  उठाकर  ले  जाए |

मुन्तजिर फूल में खुशबू की तरह हूँ  कब  से,
कोई झोंको की तरह आए,  उड़ा के ले  जाए |

यह भी पानी है, मगर आँखों का ऐसा पानी,
जो हाथों पर रची मेंहदी छुड़ा  कर ले जाए |

मैं मोहब्बत से भटकता हुआ खत हूँ मुझको,
जिंदगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाए |

खाक  हैं  इंसाफ है  नाबीना  बुत्तो  के  आगे,
रात थाली में चिरागां को सजाकर ले  जाए |



1. मुन्तजिर = प्रतीक्षा में
2. नाबीना = अंधा

क्या आपको ये आई-मैजिक अंदाज़ पसंद आया ? यदि हां !!! तो अपने विचारों से अवगत कराएं |

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6 टिप्पणियाँ
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  1. बहुत खूबसूरत गजल ... आभार इसे पढ़वाने के लिए

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  2. बहुत खूबसूरत अश'आर !
    शक्रिया गजल को साझा करने के लिए !
    शुभकामनाएँ!
    उर्दू का सबक देना ज़ारी रखे ...कृपया !

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  3. यह भी पानी है, मगर आँखों का ऐसा पानी,
    जो हाथों पर रची मेंहदी छुड़ा कर ले जाए |

    बहुत सुंदर शायरी है बशीर जी कि ...
    विनीत जी आपके ब्लॉग का रंग संयोजन बहुत खूबसूरत है ...!!
    बधाई एवं शुभकामनायें ...!

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  4. बशीर साहब की नज्म बहुत ही खुबसूरत लगी ,बिलकुल आपके ब्लॉग के नये लुक की तरह हसीनो जमील ,और दिलकश .इसमें एक जगह मुन्तज़र लिखा है ,वो मुन्तजिर है.क्यों की मेरी मादरी जुबान ही उर्दू है.इसलिए हम मुन्तजिर बोलते सुनते आये हैं.

    मोहब्बत नामा पर आपका स्वागत है .अब आपकी हर पोस्ट मोहब्बत नामा पर अपडेट्स दिखाई जाती रहेगी.
    http://ishq-love.blogspot.com/

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