आ के तेरे दर पे
मुझे मुस्कराने की आदत नहीं है |
तेरे इस हाल पे
मुझे मुस्कराने की आदत नहीं हैं |
मिलने की इच्छा की
खुद चला आया, कहलाने की आदत नहीं है |
प्यार है तुमसे
है इकरार, नज़र चुराने की आदत नहीं है |
जख्म लगता है रोज
मगर जख्म छुपाने की आदत नहीं है |
भटकते हैं कदम अक्सर
मगर मय में डूब जाने की आदत नहीं है |
दर्द मिला मुझे
तेरे जुदाई में, मगर सुनाने की आदत नहीं है |
क्या आपको ये अंदाज़ पसंद आया ? यदि हां !!! तो अपने विचारों से अवगत कराएं |
वाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआ के तेरे दर पे,...होना चाहिए,....
NEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे भी कमेन्ट करने के आदत नहीं................
मजाक था.................
बहुत ही अच्छी कविता.
Aur tab bhee aisaa kartaa hoon :)
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ॥समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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