* इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
* यह संस्था चुनाव आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी।
* किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
* भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
* भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
* अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
* लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
* लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
* सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
* लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।
न्यायाधीश संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी
3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा: यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।
अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.
सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.
आम जनता (आम नागरिक जो इस भारत देश का रहने वाला आम आदमी)
और ये सांसद चुने जाने के बाद ये भूल जाते है कि ये आम आदमी द्वारा चुने गए जनता के नुमाइंदे हैं जिन्होंने इन सांसदों को ये अधिकार दिया है कि वो इस देश की सर्वोच्च संस्था में बैठ कर आम जनमानस की भलाई के लिए काम करें
मगर ये आज की मौजूदा सरकार के ये सांसद ये अपने स्वार्थवश में ये भूल गए हैं कि वो जनता के प्रतिनिधि है | कुछ समय बाद यही सांसद फिर आम जनता के बीच जायेंगे व उनसे खुद को चुने जाने की अपील करेंगे कि उन्हें सांसद बनाने के लिए वोट करें | जब कि सभी जानते हैं कि आम जनता की वोटिंग के बिना पार्लियामैंट का निर्माण हो ही नहीं सकता,
इसलिए आम जनमानस (आम व्यक्ति, आम आदमी) ही सांसदों को चुन कर पार्लियामैंट का निर्माण करता है और वो ये उम्मीद करता है कि ये सांसद उस आम जनमानस की भलाई के लिए काम करेंगे | उनकी भलाई के लिए कानून बनायेगे | मगर ....
ये सांसद बनते ही भूल जाते हैं कि इन्हें आम आदमी ने उन्हें किसलिए चुना है और वो ये कहने लगते हैं कि किसी भी प्रकार के कानून को बनाना उनके अधिकार क्षेत्र में आता है और वो ही ये तय करेंगे कि कानून का स्वरूप कैसा हो, इस कानून के दायरे में कौन-कौन व्यक्ति आये ?
कैसी द्विअर्थी सोच है ?
इस द्विअर्थी सोच के विरुद्ध ही अन्ना हजारे ने अपने अनशन को 16 अगस्त 2011 को जे.पी. पार्क से शुरू करने की कोशिश की तो मौजूदा सरकार ने इस अनशन को ना होने देने का फैसला करके ये साबित कर दिया कि वो इस देश के सर्वोच्च सविंधान में उल्लेखित
लेकिन सरकार ने भी ये तय कर लिया कि हमें अन्ना हजारे के इस आंदोलन को आम आदमी की आवाज नहीं बनने देना व इस जन लोकपाल बिल को भी जो अन्ना हजारे व सिविल कमेटी द्वारा सुझाये गए बिल को पास नहीं करना है | इसलिए तो इस बिल को नकार कर सरकार ने इस बिल में अपने मनमुताबिक संशोधन कर के इस बिल को कानूनी अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया
मगर ये सवाल तो उभरता ही है व अनुतरित है कि सरकार लोकतंत्र को दबाना क्यों चाहती है क्यों नहीं आम आदमी को आपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से कहने की आज़ादी नहीं देना चाहती ?
क्यों आम आदमी जब सांसद चुना जाता है तो उसकी सोच बदल जाती है कि उसे ये अधिकार मिल गया है कि वो मनचाहे कानून बना सकता है ?
क्यों वो आम आदमी की भलाई के बारे में सोचना भूलकर अपनी आज़ादी के बारे में सोचने लगता है ?
ये लेख मैं १६ अगस्त २०११ को ही पूर्ण करना चाहता था मगर आपने शहर से बाहर होने के कारण कुछ वयस्ताओं के चलते इस लेख को पूर्ण नहीं किया जा सका | हालाकिं इस प्रकार के लेख लिखना मेरा विषय नहीं रहा है | परन्तु फिर भी कुछ विचार पेश करने की कोशिश की | ये मेरे अपने विचार हो सकते हैं ये जरूरी नहीं कि ये हर व्यक्ति के विचार हों | मगर हर उस व्यक्ति को एक बार इस विषय पर विचारमंथन जरूर करना चाहिए कि क्या हमें अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की आज़ादी नहीं होनी चाहिए या नहीं | अन्ना हजारे द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त करना वो भी शांतिपूर्ण ढंग से, कानून की नज़र में अपराध कैसे हो गया कि वहाँ पर धारा 144 आनन फानन में लगा दी गई व शर्ते निरधारित कर दी गई
इस पर विचार करने की जरूरत है
क्या भारत सरकार नहीं चाहती है कि ऐसी कोई और स्वतायत संस्था बने जो उसके कामकाज पर अंकुश लगा सके जैसा कि चुनाव कमीशन व नयायपालिका जैसी संस्थाएं करती है ?
क्या सभी सांसद ये चाहते है कि इस जन लोकपाल बिल के अंतर्गत सिर्फ आम व्यक्ति ही जवाबदेह हो , वो नहीं ?
क्या भारत सरकार ऐसे किसी भी कानून को बनाने में लोकतंत्र की आज़ादी में बाधा मानती है ? यदि नहीं तो फिर ऐसे क्या कारण है कि वो इस प्रकार की स्वतायत संस्था का निर्माण नहीं करना चाहती ?
सरकार ऐसा मानती है कि सभी सांसद इस कानून के अंतर्गत ना आयें, क्यों? क्या वो आम आदमी की परिभाषा में नहीं आते (वो आम व्यक्ति नहीं है ) या वो कानून का सम्मान नहीं करना चाहते | या वो जब तक सांसद है तब तक | या वो डरते है कि किसी भी घोटाले में उनका नाम आने से उनको सजा हो जायेगी | या वो ये चाहते हैं कि इस किसी भी घोटाले में उनका नाम तो आये परन्तु उन पर किसी भी तरह की कोई भी कारवाई होने की गुन्जायिश ना हो |
ऐसे बहुत से सवाल हैं जो अभी भी अनुतरित है व इनका जवाब ढूंढने की जरूरत है |
अन्ना हजारे को दिल्ली पुलिस द्वारा उनके ठहरने के स्थान से ही 7.32 पर गिरफ्तार किये जाने की एक तस्वीर
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aadarniy sir
जवाब देंहटाएंaapka kathan bilkul hi saty hai ki bharat ek lok tantrik desh hai aur yahan har shakhsh ko apne =i baat kahne ki aazadi hai. main aaapki baat ka puri tarah se samarthan karti hun.manniy anna hajare ki shanti purnek naya rang jarur layagi yah unke liye desh bhar ke samarthan se hi pata chalta hai .desh ki sthiti jarur badlegi .nishchit hi mahatma gandhi ka aazadi ka sapna fir se sakar ho sakega.
bahut bahut hi bdhiya prastuti
aapko bahut abhut hardik badhai
dhanyvaad sahit
poonam