उत्तर : रुक्न को हिंदी में "गण" भी कहा जाता है | फाईलुन, मुफाईलुन एवं फाईलातुन इत्यादि आठ तरह की शव्द टुकड़ियां रुक्न (या गण) कहलाती हैं |
रुक्न स्वयं में दीर्घ एवं लघु मात्रिक का एक निर्धारित क्रम होता है, और ग़ज़ल के संदर्भ में यह सबसे
छोटी इकाई होती है जिसका पालन अनिवार्य होता है। एक बार माहिर हो जाने पर यद्यपि रुक्न से आगे जुज़ स्तर तक का ज्ञान सहायक होता है लेकिन ग़ज़ल कहने के प्रारंभिक ज्ञान के लिये रुक्न तक की जानकारी पर्याप्त रहती है। फ़ारसी व्याकरण अनुसार रुक्न का बहुवचन अरकान है। सरलता के लिये रुक्नों (अरकान) को नाम दिये गये हैं। ये नाम इस तरह दिये गये हैं कि उन्हें उच्चारित करने से एक निर्धारित मात्रिक-क्रम ध्वनित होता है। अगर आपने किसी बहर में आने वाले रुक्न के नाम निर्धारित मात्रिक-क्रम में गुनगुना लिये तो समझ लें कि उस बहर में ग़ज़ल कहने का आधार काम आसान हो गया।
हिंदी साहित्य में गण दो प्रकार के होते हैं :-
1. वर्णिक गण वर्णिक गण आठ होते हैं | इसे समझने के लिए नीचे एक चार्ट दिया जा रहा है :-
नाम | स्वरूप | उदाहरण | सांकेतिक | |
1 | यगण | ।ऽऽ | वियोगी, कहो जी | य |
2 | मगण | ऽऽऽ | मायावी, बैनामा | म |
3 | तगण | ऽऽ। | वाचाल, बेनाम | त |
4 | रगण | ऽ।ऽ | बालिका, आदमी | र |
5 | जगण | ।ऽ। | संयोग, अनेक | ज |
6 | भगण | ऽ।। | शावक, नानक, मानक | भ |
7 | नगण | ।।। | कमल, सनम, बहर | न |
8 | सगण | ।।ऽ | सरयू, पढ़ना, बहना | स |
1. टगण इसके 13 रूप होते हैं
2. ठगण इसके 8 रूप होते हैं |
3. डगण इसके 4 रूप होते हैं |
4. ढगण इसके 3 रूप होते हैं |
5. णगण इसके 2 रूप होते हैं |
टगण | SSS | ||SS | |S|S | S||S | ||||S | |SS| | S|S| | |
|||S| | SS|| | ||S|| | |S||| | S|||| | |||||| | |||
ठगण | |SS | S|S | |||S | SS| | ||S| | |S|| | S||| | ||||| |
डगण | SS | ||S | |S| | S|| | ||||| | |||
ढगण | |S | S| | ||| | |||||
णगण | S | || |
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बहुत सुंदर जानकारी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी,...अच्छी प्रस्तुती,
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....
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शृंखला रोचक चल रही है}।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत ही सुंदर रोचक और उपयोगी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसर बहुत - बहुत आभार आपका |
जवाब देंहटाएंक्या जानकारी दी है आपने मेरे लिए ये बहुत लाजमी है धन्यवाद सर|🙏
रोचक तथ्य
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजंगल जंगल भटक के, हाल हुआ बेहाल।१३,११
जवाब देंहटाएंदिखे हजारों बाँटते, अल्प-ज्ञानमय लाल।।१३,११
अल्प-ज्ञानमय लाल, पथिक में जगती आशा।११,१३
जब देखे दो बूँद, ज्ञान की बढ़े पिपासा।।११,१३
गिरा बोल हे राम! करो अब तुम ही मंगल।
धारा रूप 'विनीत', स्वयं प्रभु पहुँचे जंगल।।
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित-
ऋतुदेव सिंह 'ऋतुराज'