कलयुग में न कोई ईमानदार दीखता है |
दौलत के बाजार में हर इन्सान बिकता है ||
सेवादार हो या उच्चपदस्थ अधिकारी |
आज के नेताओं का हर ब्यान बिकता है ||
आज बोली लगती हर हुस्न के दरबार में |
खुद हुस्न क्या ? इनका तो दीदार बिकता है ||
अपनी गलती पे न कोई शर्मसार दीखता है |
थोड़े से पैसों में झूठ-मूठ का प्यार बिकता है ||
कभी लगता था, न बिक सकेगी मोहब्बत कभी |
आज मोहब्बत तो क्या ? उसका तो खुमार बिकता है ||
आज पैसों की भूख बढ़ गई है इस कदर जहाँ में |
पैसों के लिए हर इन्सान का ईमान बिकता है ||
पैसों के लिए हर इन्सान का ईमान बिकता है !!!
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शनिवार, नवंबर 19, 2011
बहुत सुन्दर रचना , बधाई स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएंविनीत जी आप ये सब भी लिखते हैं ? बहुत खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंमैं तो सोच रही थी की आप तकनीकि जानकारियाँ ही देते हैं :)
एकदम खरी बात
जवाब देंहटाएंsatya vachan.....satik varnan
जवाब देंहटाएंभौतिकता इतनी हावी हो गई है कि इंसानियत बिक रही है।
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी कहाँ गयी ?
जवाब देंहटाएंमैं चकित हूँ की आप ऐसा भी लिखते हैं ... मैंने तो सोचा था कि केवल तकनीकि जानकारी देते हैं ..
बहुत खूबसूरत गज़ल
आपके ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी क्यों नहीं आ रही ?
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल
संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआप कहीं अपनी टिपण्णी मुझे "कान्टेक्ट मी" पर कलिक करके तो नहीं कर रही | क्योंकि आप की टिप्पणी सीधी मेरे ई-मेल पर आ रही है | क्योंकि इस कांटैक्ट फार्म पर ई-मेल करने के लिए HTML कोड का इस्तेमाल किया गया है | इस कोड के द्वारा इस फार्म पर कमेन्ट्स करने पर सिर्फ मेरे ई-मेल में ही कमेन्ट्स प्राप्त होते हैं | इसका फायदा ये है कि आप कोई भी पर्सनल मेसेज भी भेजना चाहें तो भेज सकती है | आप दोबारा से "क्या आप टिप्पणी करना चाहते हैं ? यदि आप का जवाब हाँ है तो यहाँ पर कलिक करें" बटन पर कलिक करें | टिप्पणी बाक्स खुलेगा वहाँ पर आप टिप्पणी कर सकती हैं | टिप्पणी तुरंत प्रकाशित होगी |
संगीता स्वरूप जी आपकी टिप्पणी स्पैम में चली गई थी | वो प्रकाशित हो गई हैं |
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