धीरेन्द्र सिंह भादुरिया
तुम्ही हो राष्ट्र के रक्षक तुम भारत के प्यार हो,
आने वाले कल में तुम हो आज से ही जुट जाओ
कल आने के पहले ही तुम करके कुछ दिखलाओ,
सबसे पहले पढ लिखकर जीवन में बढ़ना सीखो
लक्क्ष बनाकर तुम अपना पीछे मुड़कर मत देखो,
फिर तुम सेवा करो राष्ट्रकी अपना नाम कमाओगे
मात पिता के साथ साथ भारत का मान बढाओगे
वो खुलकर मिलने का
कांधे पे रख के हाथ
तेरे साथ चलने का...।
वो शाम सिंदूरी में
नदी तट पे टहलने का
भूल जाते थे हमतुम
जो सूरज ढलने का...।
बंद जो करती थी
आंखे मेरी तू झट से...
मैं पहले ही जान लेता था,
तेरे कदमों की आहट से...
फिर भी अनजान होकर,
तेरे हाथो को टटोलता था
अपनी दबी आरजू को
हौले से उड़ेलता था।
आज भी तेरी खातिर
मेरा मन तड़पता है
हर तरफ मुझे अब,
सन्नाटा दिखता है
हर ख्वाब भी रातों को
उपहास ही करता है...।
गम है तुम्हे पाकर
फिर से खोने का...
कितना असर है जीवन में,
तेरे ना होने का...
फर्क तो होगा ही
अंधेरा होने का...
फिर इंतजार है आखों को
एक सवेरा होने का...।
जब- जब हवा में
पर्दा हिलता है,
तेरे आने की आहट से
दीया उम्मीद का जलता है
फिर बुझ जाता है पल भर में,
सिर्फ एक साया दिखता है...।
अब व्याधूत मन मेरा
बुला रहा है थककर
कब रहगुजर होगी
तुम अपने प्रेम पथ पर...?
मैं प्रतीक्षारत हूं आज भी
खिड़की से लगकर...
सच मैं कुंदन हो जाउंगी
जिस दिन तुमसे छू जाउंगी
हाँ मैं चन्दन हो जाउंगी
मीठे तुम और तीखी मैं
तुम पूरे और रीती मैं
तुम्हे लपेटूं जिसदिन तन पर
मन से रेशम हो जाउंगी
नेह को तरसी नेह की प्यासी
साथ तुम्हारा दूर उदासी
फैला दो ना बाहें अपनी
सच मैं धड़कन हो जाउंगी
मंथर जीवन राह कठिन है
इन बातों की थाह कठिन है
तुम जो भर दो किरणे अपनी
सच मैं पूनम हो जाउंगी
दुआओं के धागे बाँध
मैं अदृश्य नहीं थी
मैं हवाओं में थी
मैं पत्तों के कम्पन में थी
जहाँ जहाँ मैं नहीं थी
वहाँ वहाँ मैं थी ....
मुझे ढूंढना वक़्त गंवाना है
क्योंकि मैं वक़्त वक़्त में हूँ
मैं उसकी आहट हूँ
कभी मुस्कान
कभी अजान
कभी आह्वान .....
तुम क्यूँ हो अनजान
इतने परेशान
मैं थी मैं हूँ मैं ......
कामवाली बाइयों को डांटते-फटकारते समय शायद ही किसी को याद रहता हो कि उनका भी घर परिवार है और उन पर भी ढेरों जिम्मेदारियां हैं। यदि वह चुपचाप मालकिन के मनोनुकूल काम करती रहे तो सब ठीक है लेकिन जहां उसने एक भी गड़बड़ की तो उसके साथ कहा सुनी तय रहती है। यदि किसी कार्यालय में काम करने वाली महिला अपने कार्यालय में देर से पहुंचती है तो वह पूरी आशा रखती है कि उसके अधिकारी को उसके प्रति दयाभाव दिखाना चाहिए और उसकी लेटलतीफी को अनदेखा कर देना चाहिए लेकिन कामवाली बाई की लेटपतीफी सहनीय नहीं होती है।
बहरहाल, एक ओर जिनके तीन-चार बच्चे हों (या इससे भी अधिक) कम या अनिश्चित आमदनी वाला पति हो, सास-ससुर, ननद-देवर यानी भरा-पूरा परिवार हो, वह अलस्सुबह जागकर पहले अपने घर के काम निपटाती है फिर चल पड़ती है चार पैसे कमाने की जुगत में। उसकी लालसा रहती है कि उसे अधिक से अधिक घरों में काम मिल जाए ताकि कुछ अधिक पैसे कमा सके।
पहले घर में पहुंच कर वह झाडू लगाती है, बरतन मांजती है, यदि कपड़े धोने का काम भी साथ में है तो कपड़े भी धोती है, फिर भोजन पकाती है। भोजन पकाने के बाद उसे खाने की मेज पर या फ्रिज में रखने के बाद उसके काम की समाप्ति होती है। यही क्रम दूसरे घर में रहता है। फिर तीसरे, चौथे, पांचवें अर्थात जितने घरों में वह काम करती है, यही सारी काम उसे करने होते हैं। एक ही काम को बार-बार दोहराते हुए न तो उसे बोर होने का समय रहता है और न अधिकार। पैसे कमाने हैं तो काम तो करना ही पड़ेगा। सुबह से शाम तक या लगभग रात तक कामवाली बाई का दायित्व निभाने के बाद जब वह थकी-हारी अपने घर लौटती है तो अकसर उसे हिस्से में ही आते हैं उसके अपने घर के काम-काज। इस व्यस्ततम दिनचर्या में जिस भी घर में पहुंचने में उसे देर हो जाती है वहां चार बातें सुनने को मिलती हैं।
देर होने का कारण भले ही छोटा क्यों न हो, उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताना उसकी विवशता हो जाती है ताकि मालकिन पसीज जाए और उसे काम से निकालने के बारे में न सोचे। वह सच है कि शहरों में अब कामवाली बाइयों की यूनियनें गठित होने लगी हैं। राज्य सरकारें भी उसके अधिकारों और सम्मान के बारे में सजग हो चली है। लोकसभा में महिला एवं बालविकास मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा महिलाओं का कार्यस्थल में लैंगिक उत्पीड़न से संरक्षण संबंधी विधेयक 2010 पटल पर रखा गया था। यद्यपि इसमें घरेलू नौकरानियों के दैहिक शोषण के संबंध में स्पष्ट व्याख्या नहीं थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घरों में काम करने वाली महिलाओं को कामवाली बाई के बदले बहन जी अथवा दीदी के संबोधन से पुकारने की अपील की। उनका मानना है कि इससे घरेलू काम-काज करने वाली औरतों के सम्मान को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने घरेलू नौकरानियों की महापंचायत के आयोजन किए जाने का भी आह्वान किया। उन्हें फोटोयुक्त परिचय पत्र तथा प्रशिक्षण दिए जाने की भी योजना है।
महाराष्ट्र और केरल की भांति दिल्ली राज्य सरकार घरेलू कामगार एक्ट लागू करने के लिए प्रयास कर रही है। जिनके अंतर्गत कामवाली बाई को साप्ताहिक अवकाश के साथ-साथ अन्य सुविधाएं लेने की भी पात्र होंगी। दिल्ली सरकार के श्रम विभाग द्वारा साप्ताहिक अवकाश, न्यूनतम वेतन तथा अन्य सुविधाओं का खाका तैयार किया जा चुका है। यह लाभ उन सभी कामवाली बाइयों को मिलेगा जो अपना पंजीयन कराएंगी। यदि वह सब यथावत होता है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि कामवाली बाइयों की जीवन दशा में सकारात्मक सुधार होकर रहेगा।
घरेलू जीवन के रोजमर्रा के तंत्र में कामवाली बाइयों के महत्व को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता है। चाहे कामकाजी महिलाएं हों या खांटी घरेलू महिलाएं, कामवाली बाइयों के बिना उनके जीवन की तस्वीर पूरी नहीं उभरती है। कम से कम भारत में तो कामवाली बाइयों को बुनियादी आवश्यकता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
बिल्कुल मेरे हाथ की लकीरों जैसी थी...
जैसे खुदा ने हूबहू एक सी किस्मतें दी हों हमें
पर मेरी किस्मत में उसका हाथ नहीं था
न उसकी किस्मत में मेरा
कहीं लकीरों के हेर फेर में खुदा ने गलती कर दी थी
इसलिए उसके हाथ में मेरे नाम की लकीर नहीं थी
न मेरे हाथ में उसके नाम की
इसलिए एक होते हुए भी
हमारा इश्क जुदा था...हमारे इश्क को जुदा होना था
मगर जिंदगी के एक मोड़ पर
इन्तेजार करता मेरा हमसफ़र मुझे मिल गया
क्या मैं उम्मीद करूँ की उसे भी उसका हमसफ़र मिलेगा?
शबे-गम के इरादों की तरह जलो
किसने देखी है सुबह
आफताब के वादों की तरह जलो
कतरा कतरा काम आये किसी के
किसी काँधे पे दिलासे की तरह जलो
लगा के तीली रौशन हो जाये
सुलगते हुए सवालों की तरह जलो
हवा आँधी तूफाँ तो आयेंगे
टक्कर के हौसलों की तरह जलो
मिट्टी की महक वाज़िब है
खुदाओं के शहर में मसीहों की तरह जलो
कोठियों से मुल्क की ऊंचाइयां मत आंकिये, असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है।।’’
देश की तथाकथित आज़ादी की इस 65वीं वर्षगाँठ के मौके पर अदम गोंडवी की ये पंक्तियाँ सोचने पर मजबूर कर रही हैं। मैं फुटपाथ पर आबाद हिंदुस्तान हूँ। मैं यह तो नहीं कह सकता कि मेरी आवाज सुनो, लेकिन नक्कारखाने में तूती की तरह ही सही मैं बोलना चाहता हूँ। बचपन से किस्से कहानियों में सुनता आ रहा हूँ कि किले में राजा-महाराजा सब रहा करते थे। धरती पर आने में थोड़ी देर कर दी इसलिए राजा-रानी के दर्शन नहीं कर पाया कभी। मेरे आने से पहले ही देश में लोकतंत्र (?) आ गया। लेकिन फिर भी टिकट कटाकर लालकिले जरूर गया हूँ। राजा-रानी तो नहीं लेकिन उनके कमरे, बाथरूम, बगीचे जरूर देखने को मिले। राजा के सैनिक तो नहीं लेकिन स्वतंत्रता की रक्षा में लगे सैनिक जरूर दिखाई दिए।
याद आती है
छवि तुम्हारी
द्रुतगति से
काम में तल्लीन
कहीं नीला शांत रंग
कहीं उल्लसित गेरू से पुती
दीवारें कच्ची
माटी के आँगन पर उभरती
तुम्हारी उँगलियों की छाप थी
या कि रहस्यमयी नियति की
तस्वीर सच्ची
तुम नहीं थी
आज की नारी जैसी
जो बदलती है करवटें रात भर
और नहीं चाहती
परम्परा के बोझ तले
साँसें दबी घुटी सी
पर चाहती है गोद में बेटा
सिर्फ बेटा
और बेटे से आस पुरानी सी
मैं सुनता हूँ उसकी सिसकती साँसे
विविध रंगों के बीच
मुरझाए चेहरों की कहानी कहती
दीवार पर लटकी
किसी महंगी तस्वीर सी
और उधर मैं
फोन के एक सिरे पर
झेलता हूँ त्रासदी
तेरी गोद में
छुप जाने को बैचैन
नहीं कमा पाया मनचाहा
ना ही कर पाया हूँ मनचीती
लौटना चाहता हूँ
तेरे आँचल की छाँव में
डरता हूँ
अगले कदम की फिसलन से
प्रतिनायक बना खड़ा है
मेरा व्यक्तित्व
मेरी प्रतिच्छवि बनकर
क्या सचमुच
मैं यही होना चाहता था
जो आज हूँ
पर सच है
मैं लौटना चाहता हूँ !
मैं लौटना चाहता हूँ !!
लौटना चाहता हूँ !!!
आँख खुले तो आंसू आयें,
अबकी बार लगी गर ठोकर,
शायद हम फिर संभल न पायें.
हर रस्ते ने था भटकाया,
हर मंज़िल बेगानी निकली.
हाथ जिसे समझे थे अपना,
मेंहदी वहाँ परायी निकली.
|
मै भी काव्य मंच में अपनी रचनाओ के साथ जुडना चाहता हूँ,मुझे क्या करना होगा,बताए,
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इजाजत चाहिए | आपकी रचनाओं को यथायोग्य सम्मान के साथ यहाँ पर दिखाया जायेगा | आप अपने और दोस्तों को भी इस के लिए प्रेरित करें |
वनीत जी नमस्कार मेरी नई रचना के लिये पधारे आपका
जवाब देंहटाएंस्वागत है ..
और हो सके तो मेरी नई रचना का अपने ब्लॉग में लिंक दे!
आपका आभार !
मनीष जी आपका अभिप्राय: यदि ये है कि आप इस पेज पर अपनी इस नवरचित रचना को देखना चाहते हैं तो कृपया दोबारा से एक टिप्पणी प्रकाशित करने के लिए कर दीजिए | इस पेज पर आपके इस रचना को उचित सम्मान के साथ प्रस्तुत किये जायेगा |
जवाब देंहटाएंवनीत जी मेरी रचना को शामिल करने के लिये एवं बहुत उपयोगी
जवाब देंहटाएंसुझाव देने के लिये आपका दिल से धन्यबाद !