कभी हंसाती है,
कभी रुलाती है,
ये ज़िंदगी !
हरपल नए सपने
दिखाती है
ये जिंदगी...
कभी आस का
दामन थमाती है
ये जिंदगी...
अगले ही पल
झकझोर सा
रख जाती है
ये जिंदगी...
कभी धूप है
कभी छाँव
ये जिंदगी...
कभी मुस्कराती है
कभी खिलखिलाती है
ये जिंदगी...
कभी रुलाती है
कभी सहम सी
जाती है
ये जिंदगी...
आँखों में सपने
सजाती है
फिर अगले ही पल
तोड़ जाती है
ये जिंदगी...
नहीं तोड़ पाता कोई
इसके मायाजाल को
तभी तो हर किसी की
धड़कन बन जाती है
ये जिंदगी ....ये जिंदगी ...
ye zindagi
6
बुधवार, नवंबर 16, 2011
ये जिंदगी
Tags



jindagi ke kitne roop kya bakhoobi prastut kiye hain.bahut achchi kavita.
जवाब देंहटाएंविनीत जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मुझे आज मालूम पड़ा की आप कविताए भी लिखते है ..क्या खूब लिखा आपने ...
तभी तो हर किसी की धड़कन बन जाती है जिन्दगी.
मेरे पोस्ट में स्वागत है,
अनुरोध है मेरी रचना -वजूद-को काव्य में शामिल करे....
सुन्दर रचना , बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप तो कविता भी अच्छी रच लेते हैं। हम तो मंत्रमुग्ध हैं इसके भाव पर।
जवाब देंहटाएंकभी धूप है
जवाब देंहटाएंकभी छाँव
ये जिंदगी...
ज़िन्दगी का हर रंग समेटे रचना ....