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असली "लाल किताब के फरमान 1952" हिंदी में फरमान न: 6 पेज़-33

फरमान न: 6 रियायती चालीस दिन न मंदे ग्रहों का असर उनके मुकर्रर (निश्चत) समय से पहले आ सकता है और न ही भले ग्रहों की सहायता (मदद) दिए हुए वक्त के बाद तक रह सकती है | अगर हो सकता है तो केवल यह की एक ग्रह का असर खत्म और दूसरे के शुरू के दरम्यान 40 दिन फ़ालतू (ज्यादा) होंगे, यानि बुरे ग्रह की मियाद के 40 दिन बाद तक उसका असर बुरा हो सकता है, और शुरू होने वाले अमूमन (प्राय:) नेक और मददगार ग्रह का अपनी अवधि से 40 दिन पहले ही असर होना माना है | इकठ्ठे असर के केवल 40 दिन ही होंगे | मगर दोनों के ग्रहों के भिन्न-भिन्न चालीस-चालीस दिन न होंगे | यह रियायती दिन कहलाते हैं | इस असूल पर बच्चे के जन्म से लेकर 40 दिन का छिला और मर जाने के बाद 40 दिन का मातम या चालीसा मनाया जाता है |

2. चूँकि गिनती के लंबे हिसाब को इस इल्म (विधा) में से उड़ाने के लिए 28 नक्षत्र और 12 राशि को बाद में छोड़ दिया जाता है | इसलिए दोनों की जगह जोड़ (28+12)=40 चालीस दिन कम से कम या ज्यादा से ज्यादा 43 दिन तक रियायती उपाय का असर पूरा होगा जिसकी निशानी वक्त से पहले ही नेक ग्रह का असर हो जाने के वक्त दोस्त ग्रह की चीजों की कुदरती निशानियां और बुरे ग्रह की अवधि 40 दिन तक बाद रहने वाली हालत में पापी ग्रहों की निशानियाँ हुआ करती हैं | मिसाल के तौर पर किसी का वर्ष 31 मार्च को खत्म हो रहा है, अगला साल 1 अप्रैल से शुरू होगा यह साल जो गुजर रहा है निहायत मन्दा था | अगले साल में ग्रह चाल की बुनियाद पर उम्दा ज़माना आने की उम्मीद हो रही है | इन्सान किस ख्याल में है और मालिक का फैसला पता नहीं क्या होगा | गरजे की देखने से मालूम हुआ की उसका चन्द्र नम्बर दो (2) में आ जायेगा या बृहस्पत नंबर 4 में ही बैठेगा जो अमूमन नेक असर ही दिया करते हैं | उसी तरह ही राहू नंबर 8 या नंबर 11 और बुध नंबर 8 या नंबर 3 में अक्सर मंदा असर दिया करते हैं | अब अगर मौजूदा साल में मंदे ग्रह चल रहे थे, तो

लाल किताब पन्ना नंबर 36

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